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Monday 9 October 2017

अल्पना - By Vijay Dinanath Chauhan

अल्पना - By Vijay Dinanath Chauhan
मेरी कल्पित कल्पनाओं की कल्पना,
सिसकती सांसों की जो संवेदना है
वो मेरी अल्पना है ।

गुमशुम थी जो नज़र में
वो कुमकुम आ गयी शहर में,
चेहरों का जो आईना है
वो मेरी अल्पना है ।


घुँघरू लगाके बालों में
पायल छनकाके चालों में,
कतराकर देखनेवाली जो कुदरती नगीना है
वो मेरी अल्पना है ।


लहरानेवाली अरमानों को
लह्कानेवाली  वाली परवानों को,
लहरों पे तैरती जो सफीना है
वो मेरी अल्पना है ।


धूप-धूप में छाया है
रूप-रूप में काया है,
देखकर ऐसी छांव-छटा
बादल भी लजाया है,
जिसके रंग-ढंग में 
अबमुझको रंगना है
वो मेरी अल्पना है |


शीश में सजाके चूड़ामणि शीशमहल सी
बस गयी उर में उर्वशी सी,
जिस नैन-नशीं की आँखों में
 अब मुझ को बसना है
वो मेरी अल्पना है |


उनके लबों की लाली, ख्वाबों की प्याली
खिलखिलाती कस्तूरी में है
मेरी हसरतों की बदहाली पहुँचकर भी दूरी में है,
जिनके खुशबू की खुसूसियत में
 अब मुझको बहकना है
वो मेरी अल्पना है |


हरशू हाथ बढ़ाते सब
सुनकर बातें हतप्रभ हो जाते अहले-अदब,
जिसका होकर
अब मुझको रहना है
वो मेरी अल्पना है |


है न कोई अरजी अपनी
मुझपे चलेगी हरदम मरजी उनकी,
दामन खुशियों से भरना है
बस इतना ही कहना है
वो मेरी अल्पना है |


मेरी हकीक़त में वो सपना है
मेरी वसीहत में वो गहना है,
अजनबी होकर भी जो अपना है
वो मेरी अल्पना है |


जिस नाम के लिए पीना है
उसी एहतराम के लिए जीना है,
गर जो ज़हमत जुटानी पड़ी जाने में
तो पहले मुझे मरना है
बस इतना ही कहना है वो मेरी अल्पना है ||