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Tuesday 5 December 2017

Beti - By Vijay Dinanath Chauhan

बेटी - By Vijay Dinanath Chauhan 


तेरी महफूज़ गर्भ-गोद में सोय रही,
अब चाहती हूँ नींद से जगना

बड़ी जतन से तु सेय रही 
अपने मगन में खेय रही,
अब चाहती हूँ परों से चलना । 
छूकर आँखों से उषा- किरण
नभ-तारे अब चाहती हूँ  देखना ।।
 
पाकर अमृत वक्ष से तेरी
मैं कुमकुम बैठी गुमशुम
अब चाहती हूँ बाहों में खिलना । 
लटकाकर बस्ता पीठ पे
मैं भी नौसिखिये की तरह
अब चाहती हूँ गुरुकुल में पढना  ।।

जानती हूँ पसंद नहीं मैं  पापा की
उन्हें तो चाहिए लाल – लँगोट में ललना ।  
तानें  देंगे पापा और उनकी ये दुनिया
पर सबसे लड़कर ,जिद में अड़कर
मुझको जरुर तुम जनना  ।।

माना वश न होगा तेरा संग्दिलों पर माँ,
मेरी माँ ! पर अपने दिल की जरुर तुम सुनना  ।
देकर जनम  धरा पर मुझको धन्य कर देना
बेटी हूँ सोच अपने करम को कभी न तुम कोसना ।।

हमेशा गर्व से ऊँचा रहेगा मान तेरा माँ,
मेरी माँ ! बस मुझपर कोई जुलम न करना ।
कभी न होने दूँगी दुखी तुझे माँ ,
मेरी माँ ! बस बराबर नाजों से पालना  ।।

जग जाने धन परायी मैं तू करेगी विदा
एकदिन अपने हाथों से  पर,
बनी रहूँगी इन्ही हाथों का कंगना  ।
होकर तुमसे दूर दुनिया का दस्तूर
मुझे जब पड़ेगा निभाना फिर भी,
तेरी एक बुलाहट पे चली आऊँगी तेरे अंगना  ।।

ग़र जो तेरा बेटा कभी कह दे  माँ ,
मुझे तुमसे अब अलग  है रहना ।
ये सुन  बिलकुल भी न तुम घबराना
वह तो बेटा है उसका तो लाजिमी था यह सब कहना,
काश उसे समझा पाती माँ – बाप  है तुम्हारा सबसे कीमती  गहना ।।

पर फिक्र मतकर माँ  मैं  तेरी बेटी हूँ
मुझे तो बहू – बेटी  दोनों का है फ़र्ज़ निभाना ।
और अपने कर्मों की ज्योत से इस जग को जगमगाकर है जाना ।।
                      


                                                             

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