बेटी - By Vijay Dinanath Chauhan
माना वश न होगा तेरा संग्दिलों पर माँ,
हमेशा गर्व से ऊँचा रहेगा मान तेरा माँ,
जग जाने धन परायी मैं तू करेगी विदा
ग़र जो तेरा बेटा कभी कह दे माँ ,
पर फिक्र मतकर माँ मैं तेरी बेटी हूँ
तेरी महफूज़ गर्भ-गोद में सोय रही,
अब चाहती हूँ नींद से जगना
बड़ी जतन से तु सेय रही
अपने मगन में खेय रही,
बड़ी जतन से तु सेय रही
अपने मगन में खेय रही,
अब चाहती हूँ परों से चलना ।
छूकर आँखों से उषा- किरण
नभ-तारे अब चाहती हूँ
देखना ।।
पाकर अमृत वक्ष से तेरी
मैं कुमकुम बैठी गुमशुम
अब चाहती हूँ बाहों में खिलना ।
लटकाकर बस्ता पीठ पे
मैं भी नौसिखिये की तरह
अब चाहती हूँ गुरुकुल में पढना ।।
जानती हूँ पसंद नहीं मैं
पापा की
उन्हें तो चाहिए लाल – लँगोट में ललना ।
तानें देंगे पापा और
उनकी ये दुनिया
पर सबसे लड़कर ,जिद में अड़कर
मुझको जरुर तुम जनना
।।
माना वश न होगा तेरा संग्दिलों पर माँ,
मेरी माँ ! पर अपने दिल की जरुर तुम सुनना ।
देकर जनम धरा पर
मुझको धन्य कर देना
बेटी हूँ सोच अपने करम को कभी न तुम कोसना ।।
हमेशा गर्व से ऊँचा रहेगा मान तेरा माँ,
मेरी माँ ! बस मुझपर कोई जुलम न करना ।
कभी न होने दूँगी दुखी तुझे माँ ,
मेरी माँ ! बस बराबर नाजों से पालना ।।
जग जाने धन परायी मैं तू करेगी विदा
एकदिन अपने हाथों से
पर,
बनी रहूँगी इन्ही हाथों का कंगना ।
होकर तुमसे दूर दुनिया का दस्तूर
मुझे जब पड़ेगा निभाना फिर भी,
तेरी एक बुलाहट पे चली आऊँगी तेरे अंगना ।।
ग़र जो तेरा बेटा कभी कह दे माँ ,
मुझे तुमसे अब अलग है
रहना ।
ये सुन बिलकुल भी न
तुम घबराना
वह तो बेटा है उसका तो लाजिमी था यह सब कहना,
काश उसे समझा पाती माँ – बाप
है तुम्हारा सबसे कीमती गहना ।।
पर फिक्र मतकर माँ मैं तेरी बेटी हूँ
मुझे तो बहू – बेटी
दोनों का है फ़र्ज़ निभाना ।
और अपने कर्मों की ज्योत से इस जग को जगमगाकर है जाना ।।
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