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Tuesday 5 December 2017

Ek Ladki - By Vijay Dinanath Chauhan

एक लड़की - By Vijay Dinanath Chauhan 
    जाने कब आएगी ? छक-छक करती फूलों की छड़ी,
    धक-धक करती मेरे दिल की घड़ी,
    जब निकल अपने घर से वो बस जाएगी  मेरी नज़र में ।
    
    क्या पता जब पड़ेगी नज़रें उनपे पहली दफ़ा,
    शायद ये नादानी उन्हें कर न दे खफ़ा पर,
    होगी हुस्न में  उसके वो जादू जो होती है सागर की लहर में ।।
    
    उसका मुखड़ा होगा कोई चाँद का टुकड़ा,
    उसकी आँखें जैसे अम्बर की फल्कें,
    उसके लड़कते लब से मानो कोई मधुरस छलके,
    ऐसी मद को मैंने मोहा मौसम के हर मन्जर में ।
    
    उसके गालों पे होगी ऐसी लाली जैसे दूध पे बनी हो छाली,
    उसकी आवाज़  होगी इतनी कोमल जैसे गाती हो कोई कोयल,
    ये हसरत, ये चाहत मैंने संजो रखा है अब तक के रह-ए-बसर में ।।

    उसके बालों में होगी ऐसी खुशबू, जैसे  मोरनी पे हो काले बादल का जादू,
    उसकी काया होगी इतनी चंचल जितनी बहती हो कल-कल गंगाजल,
    ऐसी कंद-कामिनी को मैंने ढूंढा हर नदी- नहर में ।
    
     उसका रंग होगा खालिस सोना जो रौशन करेगी मेरे दिल का कोना-कोना,
    चमक में होगी चन्द्रमुखी, फूलों में सूर्यमुखी,
    ऐसी वर्णों की देवी को मैंने खोजा हर डाली के गुलर में ।।
    
    जो चाहे सजा  दे -2 पर ये गुल सज जाये मेरी यादों के गुलशन में,
    अजी काँटें भी फूल बन जायेगे उनके पैरों के धूल जब उड़ आयेंगे मेरी कँटीली आँगन में,
    ऐसी अमृत-औषध को हरपल चाहां इस जंगल रूपी जीवन के हर  जहर में ।   
    
    आखिर कब पुकारेगी वो बाँह पसारे इस खुली गगन में,
    लगता है ये आह रह जाएगी अपने ही मन में,
    अब तो भेद भी मुश्किल हो गया है शब और सहर में,
    कहने को तो सूरज है सदियों से पर शायद, 
    शाम हो न जाये मंजिल से पहले चलते-चलते जीवन के सफ़र में ।।
                                                                                 
                    

  

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