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Tuesday 5 December 2017

Sirf Tum By - Vijay Dinanath Chauhan

सिर्फ़ तुम - By Vijay Dinanath Chauhan 
मेरे सोये बंद नयन में, सुबह की पहली किरण में तुम हो
भोर की लाली में, चाय की प्याली में, तुम हो 
चिड़ियों की चहक में, कोयल की फ़हक में, तुम हो
अब तो हर पल-हर छन तुम हो, सिर्फ तुम हो, तुम्हीं तुम हो ।।

फूलों में,कलियों में,सपनों की गलियों में, तुम हो
शहद के छत्ते में, पेड़ों के हर पत्ते में, तुम हो ।
बरबस जग नींद से सोचने लगा तुम्हें
अब तो हर शय में,चप्पे–चप्पे में,तुम हो, सिर्फ तुम हो,तुम्हीं तुम हो ।।

रोटी में-सब्जी में,चावल में-दाल में,जिंदगी के हर छोटे-बड़े सवाल में,तुम हो
कॉलेज के रस्ते में, किताबों के बस्ते में, तुम हो ।
सोता हूँ जागता हूँ, जिधर भी जाता हूँ, तुम्हें याद करता हूँ
अब तो यादों के हर गुलदस्तें में तुम हो, सिर्फ तुम हो, तुम्हीं  तुम हो ।।

खून के एक-एक कतरे में, मेरी सहूलियत मेरे सहारे में, तुम हो
यहाँ-वहां  न जाने कहाँ-कहाँ, जीवन के हर नज़ारे में तुम हो ।
शीत की शीतलता में,तितली की कोमलता में, तुम हो
छम-छम करती पानी में, छल-छल करती रवानी में, तुम हो
इस सूने शहर में, जब आप मिले थे नज़र में, तो शोहरत हमने भी पा ली थी
अब तो जहान-ए-रब जानता है कि मेरी इबादत की हर अरजी में तुम हो, सिर्फ तुम हो, तुम्हीं तुम हो, सिर्फ तुम हो ।।   
                    
                                                       

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